केदारनाथ डोली यात्रा में कैसे शामिल हो -2024


यदि आप भी इस साल केदारनाथ डोली यात्रा-2024 (kedarnath doli yatra)में शामिल होना चाहते हैं, और इस पावन केदारनाथ डोली यात्रा की अनुभूति अपने जीवन में शामिल करना चाहते हैं तो हम आपके यहां विस्तार से बताएंगे कि आप इस वर्ष केदारनाथ डोली यात्रा मई -2024 में कैसे शामिल हो |

केदारनाथ डोली यात्रा (kedarnath doli yatra) के लिए आपको क्या तैयारी करनी है और केदारनाथ डोली यात्रा ओंकारेश्वर मंदिर से लेकर केदारनाथ धाम तक किन-किन पड़ावों से होकर गुजरेगी, इन प्रमुख जगहों पर केदारनाथ डोली यात्रा का विश्राम स्थल क्या रहेगा ओर आप इस केदारनाथ डोली यात्रा में कैसे शामिल हो सकते है |

जैसे कि आप जानते हैं केदारनाथ धाम के कपाट हर वर्ष नवंबर से लेकर अप्रैल तक 6 महीने के लिए बंद हो जाते हैं | इस दौरान बाबा केदार का शीतकालीन आसन उखीमठ में ओंकारेश्वर मंदिर है| अपनी शीतकाल अवधि के दौरान बाबा केदार की पूजा यहीं होती हैं| हर साल केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने पर बाबा केदार की पंचमुखी मूर्ति ओर भोगमूर्ति केदारनाथ मंदिर से ओंकारेश्वर मंदिर में आ जाती है |

हर वर्ष महाशिवरात्रि के दिन बाबा केदार के कपाट खोलने के घोषणा की जाती है| इस वर्ष भी 10 मई 2024 को सुबह 7:00 बजे से बाबा केदार के कपाट आम भक्त जनों के लिए खोल दिए जाएंगे|

केदारनाथ डोली यात्रा


केदारनाथ डोली यात्रा क्या है| What is kedarnath doli yatra

केदारनाथ धाम कपाट खुलने की घोषणा के साथ ही, बाबा केदारनाथ डोली यात्रा की तैयारी शुरू हो जाती है| उखीमठ में ओंकारेश्वर मंदिर से बाबा केदार की पंचमुखी मूर्ति की डोली, केदारनाथ धाम कपाट खुलने से तीन-चार दिन पहले ही केदारधाम की यात्रा पर चल पड़ती है |

यह डोली यात्रा कहीं पड़ावों से होकर तीन-चार दिन बाद केदारनाथ धाम पहुंचती है| इस केदारनाथ डोली यात्रा में कुछ समय पहले तक स्थानीय लोग ही शामिल होते थे लेकिन पिछले कुछ वर्षों से देश के कोने-कोने से श्रद्धालु इस बाबा केदार की डोली यात्रा में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं|

श्रद्धालु अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार केदार नाथ बाबा डोली यात्रा के विभिन्न पड़ाव में शामिल होते रहते हैं, कोई इस यात्रा में गुप्तकाशी में तो कोई गौरीकुंड में शामिल होता है| वहीं दूसरी और भारतीय सेना का बैंड और उसकी धुन ओर यात्रा मार्ग के मनोहर्क दृश्य जो चारों तरफ बर्फबारी से ढके रहते हैं, इस डोली यात्रा के जोश को अपनी चरम सीमा पर ले जाते हैं|

केदारनाथ की डोली यात्रा में कैसे शामिल हो


केदारनाथ डोली यात्रा (kedarnath doli yatra): इतिहास और महत्व

केदारनाथ डोली यात्रा शुरुआत (kedarnath doli yatra): ऐसा माना जाता है कि बाबा केदार की डोली यात्रा का इतिहास सदियों पुराना है| पुराने समय में इस डोली यात्रा में केवल भगवान शिव की भोग मूर्ति को ही डोली में ले जाया जाता है था, लेकिन बाद में बिरला परिवार द्वारा केदारनाथ धाम को चांदी की पंचमुखी डोली भेंट की गई और तब से ही इस यात्रा में भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति भी साथ-साथ चलती है |

डोली यात्रा का महत्व: कुछ समय तक डोली यात्रा में स्थानीय लोग ही शामिल रहते थे लेकिन अब यह डोली यात्रा भगवान शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक बन गई है, और देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु, इस 60 किलोमीटर की लंबी डोली यात्रा में शामिल होकर बाबा केदार के धाम पहुंचते हैं| यह डोली यात्रा भक्तों को भगवान शिव के करीब लाती है जो की उत्तराखंड की संस्कृति और परंपराओं का भी प्रतीक है।

डोली यात्रा का कार्यक्रम: यह डोली यात्रा हर साल अप्रैल या मई में उखीमठ से शुरू होती है और केदारनाथ धाम तक जाती है। इस डोली यात्रा में कई पड़ाव होते हैं, जहां भक्त डोली के दर्शन करते हैं और पूजा करते हैं। यात्रा के अंतिम दिन, डोली केदारनाथ धाम पहुंचती है और अगले दिन मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खुलते हैं।

डोली यात्रा एक अविस्मरणीय अनुभव है जो भक्तों को जीवन भर याद रहता है।


शिव जी की पंचमुखी डोली का कहानी :-

बाबा केदार जो शिवजी का ही रूप है उनकी पंचमुखी डोली, जिसमें की भगवान शिव के पांच रूपों को दर्शाया गया है ओंकारेश्वर मंदिर से लिए तीन-चार दिन की यात्रा के बाद केदार धाम पहुंचती है| इस डोली में भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति है जिसके पांचो स्वरूप अलग-अलग रूपों को दर्शाते हैं|

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की पंचमुखी डोली को ओंकारेश्वर मंदिर से केदारनाथ धाम ले जाने की जिम्मेदारी रांसी और गोदार गांव के लोगों सोपी गई है जो की नंगे पाँव इस डोली को केदार धाम तक लेकर जाते | डोली यात्रा मार्ग में लाखों की संख्या में भक्त लोग शामिल होते हैं और इन भक्तों के लिए मार्ग में खाने के लिए भंडारे आदि की पूरी व्यवस्था स्थानीय लोगों द्वारा की जाती है|

ओंकारेश्वर मंदिर में शीतकालीन सत्र के दौरान बाबा केदार की पूजा यहां पर दक्षिण भारतीय पुजारी द्वारा की जाती है जिनको हम रावल भी कहते हैं| दक्षिण भारतीय पुजारी की नियुक्ति की परम्परा आदि शंकराचार्य के समय से है और उत्तर के इन मंदिरों में दक्षिण के पुजारी द्वारा पूजा अर्चना की जाती है|


शिव जी को पंचमुखी रूप धारण करने की कथाएं :-


भगवान विष्णु का मोहक रूप: एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने एक बार सुंदर बालक का रूप धारण किया, उनके इस मनोहर बाल रूप को देखने के लिए ब्रह्मा जी , शिवजी और स्वर्ग अन्य के देवता भी प्रकट हुए| सभी ने अपने अनेक रूपों से भगवान के स्वरूप का आनंद लिया और प्रशंसा भी की, ब्रह्मा जी ने अपने सभी मुखो से भगवान के इस बाल स्वरूप के दर्शन किये , यह देख भगवान शिव के मन में भी यह जिज्ञासा उठी कि अगर उनके भी एक से अधिक नेत्र ओर मुख होते तो उन्हें भी भगवान के इस बाल स्वरूप के दर्शन का अधिक लाभ होता , यही सोच कर भगवान शिव ने भी पंचमुखी रूप धारण किया इसीलिए उनको पंचानन भी कहते हैं|

पांच तत्वों का प्रतीक: भगवान शिव के पंचमुखी रूप को पांच तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का प्रतीक भी माना जाता है। इस प्रकार सृष्टि के सृजन, संचालक, पालनहार ,नियंत्रक और विनाशक , सभी रूप शिव के है | शिव ही सब है ओर सब मे शिव है |

पांच दिशाओं का प्रतीक: भगवान शिव जी के पांच मुख पांच दिशाओं के प्रतीक भी माने जाते हैं – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊपर ( आकश )

पांच शक्तियों का प्रतीक: भगवान शिव जी के पांच मुख उनकी पांच शक्तियों – सृष्टि, रक्षा, संहार, तिरोधान और अनुग्रह का भी प्रतीक माने जाते हैं।

अघोर रूप का प्रतीक: भगवान शिव जी का पंचमुखी रूप उनके अघोर रूप का भी प्रतीक माना जाता है। यह रूप उन नकारात्मक शक्तियों और बुराइयों को दूर करने का प्रतीक है जो मनुष्य को हानि पहुंचाती हैं।


पंचमुखी शिवलिंग के पांच मुख और उनके अर्थ:

1. सद्योजात मुख (पूर्व दिशा): भगवान शिव का यह रूप सजन का प्रतीक और धरती तत्व जुड़ा हुआ है और यह सफेद रंग का प्रतीक है|

2. वामदेव मुख (उत्तर दिशा): भगवान शिव का वामदेव मुख पालन और पोषण का प्रतीक है यह रूप जल तत्व जुड़ा हुआ है इसलिए इसका रंग नीला है|

3. अघोर मुख (दक्षिण दिशा): भगवान शिव का अघोर मुख इस संसार में परिवर्तन और संहार का प्रतीक है जो की अग्नि तत्व से जुड़ा हुआ है और इस कारण इसका रंग लाल है|

4. तत्पुरुष मुख (पश्चिम दिशा): भगवान शिव का यह रूप ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है इसलिए यह वायु तत्व जुड़ा हुआ है और इसका रंग पीला है|

5. ईशान मुख (ऊर्ध्व दिशा): भगवान शिव का यह रूप मुक्ति और आकाश का प्रतीक है यह रूप आकाश तत्व से जुड़ा हुआ है और रंगहीन है|

किस प्रकार पंचमुखी शिवलिंग भगवान शिव के पांच रूपों, पांच कर्तव्यों और पांच तत्वों का प्रतीक है। यह सृजन, पालन, पोषण, परिवर्तन, ज्ञान और मुक्ति का प्रतीक है।


केदारनाथ की डोली यात्रा (kedarnath doli yatra) में कैसे शामिल हो सकते हैं?

हर साल की तरह इस साल भी 5 मई 2024 को भगवान शिव की डोली की यात्रा की तैयारी शुरू हो जाएगी, उखीमठ में इस दिन शाम को उखीमठ में बाबा भैरवनाथ की पूजा अर्चना की जाएगी, बाबा भैरवनाथ को उत्तराखंड के क्षेत्रपाल के रूप में पूजा जाता है जिसका अर्थ है इस क्षेत्र की रक्षक या पालनहार|

केदारनाथ डोली यात्रा (Kedarnath Doli Yatra) की तारीख ओर यात्रा कार्यक्रम -2024


5 मई – शाम को भगवान भैरवनाथ की पूजा के साथ केदारनाथ की 60 किलोमीटर की यात्रा तैयारी|

6 मई – सुबह के समय भगवान केदारनाथ की पंचमुखी मूर्ति (पंचमुखी ओर भोगमूर्ति) उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर से भक्तों के साथ प्रस्थान करेगी | साथ में भारतीय सेना का बैंड, ढोल नगाड़े, और स्थानीय वाद्य यंत्रों की धुनों का सफ़र |

6 मई – बाबा केदार की डोली का पहला पड़ाव गुप्तकाशी में होगा। डोली रात्रि पर यही पर विश्राम करेगी |

7 मई – अगले दिन डोली सभी भक्तों के साथ आगे बढ़ते हुए फाटा में पहुंचेगी और रात्रि यही पर विश्राम करेगी |

8 मई – उसके पश्चात बाबा की डोली फाटा से गौरीकुंड में पहुंचेगी और रात्रि गौरीकुंड में ही विश्राम करेगी

9 मई- को बाबा केदार की डोली 18 किलोमीटर की लंबी चढ़ाई के पश्चात गौरीकुंड से केदार धाम पहुंचेगी|

10 मई 2024 को बाबा केदार के कपाट सुबह 7:00 बजे लाखों भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे और आप बाबा केदार के यहां पर सच्चे मन से दर्शन कर सकते हैं|


उखीमठ का ओंकारेश्वर मंदिर और अष्ट भैरव मंदिर:

ओंकारेश्वर मंदिर: ओंकारेश्वर मंदिर शीतकालीन समय में बाबा केदार की डोली यहीं पर विराजमान रहती है पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्यवंशी राजा मांधाता ने भगवान शिव की तपस्या यहीं पर की थी ओर उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें ओंकारेश्वर रूप में दर्शन दिए , इसी कारण यहां स्थित मंदिर को ओंकारेश्वर नाम दिया गया। बाद में इसी स्थान पर बाणासुर की पुत्री उषा और श्रीकृष्ण के पोत्र अनिरुद्ध का विवाह हुआ था। इस वजह से इस स्थान को उषा मठ नाम दिया गया जो की अब वक्त के साथ उखीमठ बन गया है ।

उखीमठ मंदिर - बाबा केदार का शीतकालीन धाम









अष्ट भैरव मंदिर: वहीं पास में अष्ट भैरव का मंदिर भी है | बाबा केदार की डोली केदार धाम के प्रस्थान से पहले की रात्रि को अष्ट वैभव की पूजा की जाती है | यहां पर भैरव के आठ रूप हैं इसीलिए इसको अष्ट भैरव भी कहा जाता है| भैरव शिव का ही एक रूप है और उन्हें भगवान शिव का रक्षक के रूप में भी जाना जाता है|


केदानाथ की डोली यात्रा में कैसे शामिल हो :-

यदि आप भी साल बाबा की डोली यात्रा में शामिल होना चाहते हैं तो आपके उसकी तैयारी अभी से करनी होगी, बाबा केदार की डोली की यात्रा 6 मई को उखीमठ से शुरू हो जाएगी| इसके लिए आपको सबसे पहले हरिद्वार या ऋषिकेश आना होगा वहां से आप आसानी से गुप्त काशी की बस पकड़ कर उखीमठ पहुंच सकते हैं|

यदि हरिद्वार ऋषिकेश से आपको सीधी बस उखीमठ के लिए नहीं मिलती है तो आप रुद्रप्रयाग तक कोई भी बस पकड़ कर आ सकते हैं और फिर वहां से आपको शेयरिंग टैक्सी या जीप या लोकल बस आराम से उखीमठ पहुंचा देगी|

जब आप बस या टैक्सी से कुंड पहुंच जाएंगे तो कुंड से दो रास्ते जाते हैं एक रास्ता केदारनाथ की तरफ चला जाता है और दूसरा रास्ता कुण्ड से 5 किलोमीटर दूर उखीमठ मंदिर के लिए जाता है तो आपको कुंड से उखीमठ वाले रास्ते पर जाना है|

आप चाहे तो इस यात्रा को बीच में किसी भी स्थान से जैसे दूसरे दिन गुप्तकाशी से या तीसरे दिन फाटा से या चौथे दिन गौरीकुंड से जुड़ सकते हैं|

डोली यात्रा के दौरान खाने-पीने की व्यवस्था:-

बाबा केदार की डोली की यात्रा के दौरान जगह पर स्थानीय लोगों द्वारा भंडारे लगाए जाते हैं इसलिए इस यात्रा के दौरान खाने-पीने की अधिकतर समस्या नहीं रहती है|

डोली की यात्रा के दौरान ठहरने की व्यवस्था:-

बाबा केदार की डोली यात्रा के दौरान यदि आप पूरे समय इस यात्रा में रहना चाहते हैं तो आपको हर पड़ाव में जैसे गुप्तकाशी फाटा गौरीकुंड और केदार धाम इन सब में पहले से ही होटल की बुकिंग कर लेनी चाहिए, क्योंकि यात्रा के दौरान यहां पर होटल मिलना बहुत मुश्किल रहता है और अधिकतर होटल बुक होते हैं |

इसलिए हम आपको दो महीने पहले की यह बता रहे हैं कि आप बाबा केदार की डोली यात्रा के जीवन अनुभव लेना चाहते हैं और अपनी यात्रा को सुखद बनाना चाहते हैं तो उसकी तैयारी अभी से ही कर लें|

यहां इस बात का विशेष ध्यान रखें की अपने अंतिम दिन डोली 18 किलोमीटर की यात्रा तय कर केदार धाम पहुंचती है यदि आप पहली बार यात्रा कर रहे हैं तो आपके लिए इतनी लंबी यात्रा करना कठिन हो सकती है इसीलिए केदार धाम में होटल बुक अपनी इस यात्रा को ध्यान में रखकर ही करें|

केदारनाथ डोली यात्रा क्या है?

केदारनाथ की डोली यात्रा भागवान शिव के पञ्च मुखी रूप डोली की यात्रा जो की केदार धाम के कपाट बंद होने पर केदार धाम से शुरू होती है और ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में समाप्त होती है, वहीं जब केदार धाम के कपाट हर वर्ष अप्रैल मई में खुलते हैं ओर केदारनाथ डोली यात्रा केदारधाम के लिए कई पड़ावों से होकर केदारधाम में समाप्त होती है

क्या हम रात में केदारनाथ की यात्रा कर सकते हैं?

नहीं, शाम को 4:00 बजे के बाद गौरीकुंड से आगे के लिए यात्रियों को रोक दिया जाता है क्योंकि आगे का 18 किलोमीटर का रास्ता घने जंगलों से होकर जाता है और रात के समय में जंगली जानवरों का खतरा रहता है, इसलिए रात में केदारनाथ यात्रा की मनाही है |

क्या हम 2 साल के बच्चे को केदारनाथ ले जा सकते हैं?

वैसे तो केदारनाथ धाम की यात्रा के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं है हालांकि केदारनाथ की कठिन यात्रा को देखते हुए यह सलाह दी जाती है कि 10 साल से कम उम्र के बच्चों को इस यात्रा से बचना चाहिए|

मैं बाबा केदार की डोली यात्रा में कैसे शामिल हो सकता हूं?

बाबा केदार की डोली यात्रा में शामिल होने के लिए आपको 6 मई -2024 तक उखीमठ पहुंच जाना है, आप हरिद्वार ऋषिकेश से बस पकड़ कर आसानी से ओके मत पहुंच सकते हैं| आप चाहे तो बीच में गुप्त काशी, फाटा , या गौरीकुंड में भी डोली यात्रा में शामिल हो सकते हैं|

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