हर साल की तरह इस साल भी सरकार द्वारा चारों धामों के कपाट बंद होने की तारीखों की घोषणा कर दी है | इस प्रकार Kedarnath Temple Closing Date-2024 के साथ अन्य तीनो धामों – बद्रीनाथ , यमुनोत्री और गंगोत्री धामों के कपाट नैवेम्बेर 2024 के पहले सप्ताह में बंद होंगे |
उत्तराखंड के चारो धामों के बंद होने की तारीखों के बारे में हम आगे विस्तार से बात करेंग | Kedarnath मंदिर के बंद होने की तिथि 2024 में 3 नवंबर है, जो भाई दूज के अवसर पर होगी। यह जानकारी चार धाम यात्रा के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जिसमें अन्य प्रमुख मंदिरों की भी बंद होने की तिथियाँ शामिल हैं।
इस लेख में हम केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री और बद्रीनाथ मंदिरों की बंद होने की तिथियों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करेंगे।
Char Dham Temple | Closing Dates |
Yamunotri Temple | 03-Nov-24 |
Gangotri Temple | 03-Nov-24 |
Kedarnath Temple | 03-Nov-24 |
Badrinath Temple | 17-Nov-24 |
केदारनाथ मंदिर| Kedarnath Temple Closing Date-2024
बंद होने की तिथि: 3 नवंबर 2024 (भाई दूज)
केदारनाथ मंदिर, जो भगवान शिव को समर्पित है, हर साल गर्मियों के मौसम में खुलता है और सर्दियों में बंद हो जाता है। 2024 में, यह मंदिर 10 मई को खोला गया था और 3 नवंबर को भाई दूज के अवसर पर बंद किया जाएगा। इस दिन विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं, जिसके बाद मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। केदारनाथ से बाबा की डोली बड़े धूमधाम से वापस उखीमठ मंदिर शीतकालीन विश्राम के लिए आ जाती है|
शीतकालीन विश्राम स्थान- केदंरनाथ बाबा
भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजा और उखीमठ में उनके निवास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी :
शीतकालीन पूजा
भगवान केदारनाथ की पूजा ग्रीष्मकाल में केदारनाथ धाम में होती है, जबकि शीतकाल में वे उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में विराजते हैं। यह प्रक्रिया इसलिए अपनाई जाती है क्योंकि शीत ऋतु में केदारनाथ धाम बर्फ से ढक जाता है, जिससे वहां जीवन यापन कठिन हो जाता है। इस कारण पुजारी और स्थानीय निवासी नीचले क्षेत्रों में चले जाते हैं।
धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब मंदिर का कपाट बंद होता है, तब देवता भगवान केदारनाथ और बदरीनाथ की पूजा करते हैं। इस दौरान भगवान केदारनाथ का चल विग्रह उखीमठ लाया जाता है, जहाँ श्रद्धालु उन्हें दर्शन कर सकते हैं।
उखीमठ का ऐतिहासिक महत्व
प्राचीन किंवदंतियाँ
उखीमठ का संबंध द्वापर और सतयुग से माना जाता है। यहाँ पर भगवान राम के वंशज राजा मांधाता ने भगवान शिव की तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप भगवान शिव ओंकार ध्वनि स्वरूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए इसे ओंकारेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
प्रेम कहानी और युद्ध
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनुरुद्ध और ऊषा की प्रेम कहानी भी इसी स्थान से जुड़ी हुई है। यहाँ पर भगवान शिव और श्रीकृष्ण के बीच युद्ध हुआ था जब बाणासुर ने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया था। अंततः शिव के आदेश पर अनिरुद्ध और ऊषा का विवाह यहाँ संपन्न हुआ, जिसके बाद इस स्थान का नाम ऊषा से बदलकर ऊखीमठ पड़ा।
उखीमठ का धार्मिक महत्व
पंचकेदार यात्रा
उखीमठ को पंचकेदार के मुख्य रावल का गद्दी स्थल माना जाता है। यहाँ भगवान ओंकारेश्वर की पूजा पूरे साल होती है, और शीतकालीन पूजा भी यहीं आयोजित होती है। ग्रीष्म काल आने पर भगवान की डोली यात्रा केदारनाथ के लिए विदा होती है। इसलिए इसे दूसरा केदारनाथ भी कहा जाता है।
मंदिरों का समूह
उखीमठ में ओंकारेश्वर महादेव का मंदिर अकेला नहीं है, बल्कि यह कई मंदिरों का समूह है। यहाँ पंचकेदार लिंग दर्शन मंदिर, वाराही देवी मंदिर, भैरवनाथ मंदिर, वैराग्य पीठ, चंडिका मंदिर आदि स्थित हैं। इन सभी मंदिरों में दर्शन करने से पंचकेदार यात्रा का पुण्य प्राप्त होता है।
भगवान केदारनाथ का उखीमठ में निवास और वहाँ की पूजा विधि न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह क्षेत्र ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध है। श्रद्धालुओं को यहाँ आकर मां ओंकारेश्वर और भगवान केदारनाथ के दर्शन करने का अवसर मिलता है, जो उनके आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध करता है।
यमुनोत्री मंदिर | Yamunotri Temple Closing Date-2024
बंद होने की तिथि: 3 नवंबर 2024 (भाई दूज)
यमुनोत्री मंदिर, जो देवी यमुना को समर्पित है, भी 3 नवंबर को भाई दूज के दिन बंद होगा। यह मंदिर हर साल 10 मई को खुलता है और सर्दियों में बंद हो जाता है। यमुनोत्री का महत्व हिंदू धर्म में अत्यधिक है, और इसे चार धाम यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
खरसाली में मां यमुनाजी की शीतकालीन पूजा और दर्शन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी निम्नलिखित है:
मां यमुनाजी का मंदिर
मां यमुनाजी का मंदिर खरसाली में स्थित है, जो उत्तरकाशी जिले में है। यह स्थान मां यमुनाजी की शीतकालीन पूजा के लिए प्रसिद्ध है। हर साल, जब गंगोत्री धाम के कपाट बंद होते हैं, तो मां यमुनाजी की मूर्ति को खरसाली में लाया जाता है।
यमुनोत्री धाम का शीतकालीन प्रवास| Yamunotri Dham Winter Puja
खरसाली में पूजा का आयोजन
मां यमुनाजी की शीतकालीन पूजा का आयोजन हर साल नवंबर से शुरू होता है। इस दौरान श्रद्धालु विशेष रूप से खरसाली आते हैं ताकि वे मां यमुनाजी के दर्शन कर सकें। पूजा के समय भक्तों द्वारा भजन-कीर्तन और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
खरसाली में विशेष अनुष्ठान
पूजा के दौरान विशेष अनुष्ठान और आरती का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु यहां आकर मां यमुनाजी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
खरसाली पहुचने का यात्रा का मार्ग
खरसाली पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को ऋषिकेश से चंबा होते हुए उत्तरकाशी जाना होता है। इसके बाद, उत्तरकाशी से खरसाली की दूरी लगभग 30 किमी है।
खरसाली में ठहरने की व्यवस्था
खरसाली में ठहरने के लिए कई धर्मशालाएँ और होटल उपलब्ध हैं। श्रद्धालुओं को सलाह दी जाती है कि वे अपनी यात्रा की योजना पहले से बनाएं और ठहरने की व्यवस्था सुनिश्चित करें।
खरसाली का मौसम
खरसाली क्षेत्र का मौसम शीतकाल में काफी ठंडा होता है, जिसमें न्यूनतम तापमान 0 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है। बर्फबारी भी होती है, जो इस क्षेत्र को और भी खूबसूरत बनाती है।
खरसाली के स्थानीय उत्पाद
खरसाली और उसके आसपास के क्षेत्रों में स्थानीय हस्तशिल्प और उत्पाद भी मिलते हैं। श्रद्धालु यहाँ से विभिन्न प्रकार के हस्तनिर्मित सामान खरीद सकते हैं।
खरसाली में मां यमुनाजी की शीतकालीन पूजा एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर है। श्रद्धालुओं को यहां आकर मां यमुनाजी के दर्शन करने का अवसर मिलता है, साथ ही वे इस क्षेत्र की संस्कृति और परंपरा का अनुभव कर सकते हैं।
गंगोत्री मंदिर| Gangotri Temple Closing Date-2024
गंगोत्री धाम बंद होने की तिथि: 2 नवंबर 2024 (गोवर्धन पूजा)
गंगोत्री मंदिर, जो माँ गंगा को समर्पित है, 2 नवंबर को गोवर्धन पूजा के अवसर पर बंद होगा। यह मंदिर हर साल 10 मई को खुलता है और सर्दियों में बंद हो जाता है। गंगोत्री का स्थान हिमालय में स्थित है और यह हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
हर साल गंगोत्री धाम के कपाट बंद होने के बाद मां गंगा का शीतकालीन पूजा स्थल मुखवा में रहता है | गंगोत्री धाम के शीतकालीन पूजा और मुखवा (मुखीमठ) के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी निम्नलिखित है:
गंगोत्री धाम का शीतकालीन प्रवास| Gangotri Dham Winter Puja
गंगोत्री धाम, जो समुद्र तल से 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, के कपाट हर साल शीतकाल में बंद हो जाते हैं। इस दौरान मां गंगा की भोग मूर्ति को मुखवा (मुखीमठ) में स्थापित किया जाता है, जहाँ उनकी नियमित पूजा-अर्चना जारी रहती है। मुखवा को गंगा का मायका भी कहा जाता है और यहाँ प्राकृतिक सुंदरता के बीच श्रद्धालु मां गंगा के दर्शन कर सकते हैं।
मुखवा का महत्व
मुखवा गांव, जो गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहितों का गांव है, यहाँ 450 परिवार निवास करते हैं। शीतकाल में अधिकांश परिवार उत्तरकाशी के आसपास निवास करते हैं। मुखवा में लकड़ी के परंपरागत मकान अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ की वादियाँ, देवदार के घने जंगल और हिमाच्छादित चोटियाँ इसे एक अद्वितीय स्थान बनाती हैं।
पूजा और अनुष्ठान
मुखवा में मां अन्नपूर्णा की पूजा से दिन की शुरुआत होती है और फिर सुबह के समय 7:30 बजे गंगा मंदिर में आरती होती है और शाम की आरती शाम छह बजे संपन्न होती है। तीर्थ पुरोहित गंगाजल भरने के लिए मार्कंडेय ऋषि के मंदिर से जल लाते हैं।
अन्य मंदिरों की जानकारी
मुखवा में गंगा मंदिर के अलावा नृर्सिंग और सोमेश्वर देवता के मंदिर भी स्थित हैं, जो गंगा मंदिर से 50 मीटर की दूरी पर हैं। भागीरथी नदी के किनारे मार्कंडेय ऋषि का मंदिर भी है, जहाँ देवी अन्नपूर्णा विराजमान हैं।
यात्रा का माहौल
गंगोत्री धाम के कपाट खुलने तक मुखवा का माहौल खुशियों से भरा रहता है। अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री धाम के कपाट खुलते हैं, इससे एक दिन पहले गंगा की डोली मुखवा से विदा होती है।
हर्षिल कस्बा
मुखवा के निकट स्थित हर्षिल कस्बा विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यहाँ भगवान हरि का लक्ष्मी-नारायण मंदिर है और भागीरथी तथा जलंध्री नदी का संगम भी है। हर्षिल में ठहरने के लिए कई होटल और होम स्टे उपलब्ध हैं।
बगोरी गांव
मुखवा से चार किमी दूर बगोरी गांव स्थित है, जहाँ लकड़ी के बने घरों की सुंदरता देखने लायक है। यहाँ लाल देवता का मंदिर और एक बौद्ध स्मारक भी है।
स्थानीय उत्पाद
हर्षिल और बगोरी में भेड़ की ऊन से बने पारंपरिक वस्त्र जैसे थुलमा, पंखी, शाल आदि की खरीदारी कर सकते हैं। हर्षिल की राजमा भी प्रसिद्ध है।
यात्रा मार्ग कैसे पहुचे
- सड़क मार्ग: ऋषिकेश से चंबा होते हुए 160 किमी उत्तरकाशी आना पड़ता है।
- उत्तरकाशी से मुखवा: 78 किमी की दूरी पर स्थित है।
- हर्षिल से मुखवा: तीन किमी की दूरी पर स्थित है।
मौसम
शीतकाल में मुखवा और हर्षिल क्षेत्र का तापमान 5 से 15 डिग्री सेल्सियस रहता है, जबकि न्यूनतम तापमान 2 से -8 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है। बर्फबारी का आनंद लेने के लिए यह क्षेत्र विशेष रूप से आकर्षक होता है।
इस प्रकार, मुखवा (मुखीमठ) और गंगोत्री धाम का शीतकालीन प्रवास श्रद्धालुओं के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है, जहाँ वे मां गंगा के दर्शन कर सकते हैं और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले सकते हैं।
बद्रीनाथ मंदिर
बंद होने की तिथि: 17 नवेम्बर 2024 को बंद होंगे |
बद्रीनाथ मंदिर, जो भगवान विष्णु को समर्पित है, का बंद होने का दिन 17 नवेम्बर के अवसर पर होगा।
बद्रीनाथ धाम और उसके शीतकालीन दर्शन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी निम्नलिखित है:
बद्रीनाथ धाम का शीतकालीन दर्शन
शीतकालीन यात्रा
उत्तराखंड में शीत ऋतु के दौरान, जब बद्रीनाथ धाम बर्फ की चादर ओढ़ लेता है, तब श्रद्धालु भगवान बद्रीनारायण के दर्शन करने के लिए अन्य स्थानों पर जा सकते हैं। इस दौरान, भक्त योग-ध्यान बद्री मंदिर और नृसिंह बद्री मंदिर में दर्शन कर सकते हैं। ये दोनों मंदिर बद्रीनाथ से निकटता में स्थित हैं और यहाँ भगवान बद्रीनारायण की पूजा होती है।
बद्रीनाथ धाम, जो चमोली जिले में स्थित है, एक प्रमुख तीर्थ स्थल है जहाँ गर्मियों के दौरान भगवान बद्रीविशाल के दर्शन होते हैं। शीतकाल में, जब बर्फबारी होती है और तापमान गिर जाता है, तब मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। इस दौरान भगवान नारायण की प्रतिमा को बद्रीनाथ धाम के गर्भ गृह में सुरक्षित रखा जाता है।
शीतकालीन व्यवस्था
शीतकाल में, आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर में रखी जाती है। इसके साथ ही उद्धव जी और कुबेर जी की डोली को पांडुकेश्वर और योगध्यान बद्री में विराजित किया जाता है। चूंकि बद्रीनाथ धाम के कपाट भक्तों के लिए बंद रहते हैं, इसलिए श्रद्धालु नृसिंह मंदिर और योगध्यान बद्री में दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
परंपरा
जब धाम के कपाट खुलने का समय आता है, तो उद्धव जी, कुबेर जी और शंकराचार्य जी की गद्दी को धाम में ले जाया जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष धार्मिक अनुभव प्रदान करती है।
इस प्रकार, बद्रीनाथ धाम का शीतकालीन स्थल केवल एक धार्मिक स्थान नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक भी है। यहाँ की धार्मिक गतिविधियाँ और अनुष्ठान श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक संतोष प्रदान करते हैं।
प्रमुख मंदिर
- योग-ध्यान बद्री मंदिर:
- यह मंदिर पांडुकेश्वर में स्थित है, जो समुद्र तल से 1920 मीटर की ऊंचाई पर है।
- इस मंदिर में भगवान विष्णु की कांस्य की एक मूर्ति अपने पूर्ण ध्यान मुद्रा में स्थापित है।
- यह पंच बद्री मंदिरों में से एक है और इसके कपाट वर्षभर खुले रहते हैं।
- नृसिंह बद्री मंदिर:
- जोशीमठ में स्थित, यह भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार की पूजा करता है।
- मान्यता है कि पांडवों ने अपनी स्वर्गारोहिणी यात्रा के दौरान इस मंदिर की स्थापना की थी।
विष्णु प्रयाग
योग-ध्यान बद्री मंदिर पहुंचने से पहले विष्णु प्रयाग पड़ता है। यहाँ अलकनंदा और धौली गंगा का संगम होता है, जहां श्रद्धालु स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं।
धार्मिक मान्यता
पूर्व धर्माधिकारी पंडित भुवन चंद्र उनियाल बताते हैं कि योग-ध्यान बद्री और नृसिंह बद्री मंदिरों में भगवान बद्रीनारायण के दर्शनों का वही पुण्य माना जाता है, जो बद्रीनाथ धाम में मिलता है। इसलिए जो तीर्थ यात्री बद्रीनाथ नहीं पहुंच पाते, उन्हें इन मंदिरों में दर्शन करना चाहिए।
हनुमान चट्टी
पांडुकेश्वर से 7 किमी पहले हनुमान चट्टी स्थित है। यहां हनुमान जी का मंदिर है, जहां पर एक पौराणिक कथा के अनुसार हनुमान जी ने भीम का घमंड तोड़ा था।
ठहरने की व्यवस्था
जोशीमठ, पांडुकेश्वर और औली में ठहरने के लिए कई होटल, रिसॉर्ट और होम स्टे उपलब्ध हैं। यहाँ स्थानीय व्यंजनों का आनंद भी लिया जा सकता है, जैसे मंडुवे की रोटी, आलू के गुटखे, राजमा की दाल आदि।
यात्रा मार्ग
- निकटतम हवाई अड्डा: जौलीग्रांट (देहरादून)
- निकटतम रेलवे स्टेशन: ऋषिकेश
- ऋषिकेश से 251 किमी की दूरी तय कर सार्वजनिक और निजी वाहनों से यहाँ पहुंचा जा सकता है।
निष्कर्ष
चार धाम यात्रा का महत्व हिंदू धर्म में अत्यधिक है। ये चार प्रमुख तीर्थ स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भी भरपूर हैं। श्रद्धालुओं के लिए इन मंदिरों की यात्रा एक आध्यात्मिक अनुभव होती है। इसलिए, जो भक्त इन स्थलों पर जाने की योजना बना रहे हैं, उन्हें इन बंद होने की तिथियों का ध्यान रखना चाहिए ताकि वे अपनी यात्रा सही समय पर कर सकें।
इस प्रकार, Kedarnath, Yamunotri, Gangotri और Badrinath मंदिरों की बंद होने की तिथियाँ श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती हैं, जिससे वे अपनी यात्रा योजनाओं को सही तरीके से बना सकें।
गंगोत्री धाम के कपाट कब बंद होंगे?
गंगोत्री धाम के कपाट 02 नवेम्बर 2024 को गोवेर्धन पूजा वाले दिन बंद होंगे
यमुनोत्री धाम के कपाट कब बंद होंगे?
यमुनोत्री धाम के कपाट 03 नवेम्बर 2024 को भैया पूजा वाले दिन बंद होंगे
केदारनाथ धाम के कपाट कब बंद होंगे?
केदारनाथ धाम के कपाट 03 नवेम्बर 2024 को भैया पूजा वाले दिन बंद होंगे